सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है ,
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता है !
मैं तिरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ ,
कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है !
मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा ,
ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है !
बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं ,
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है !
ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं ,
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है !
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