Monday, 20 February 2017

बात करता है !

बड़ी मासूमियत से सादगी से बात करता है
मेरा किरदार जब भी जिंदगी से बात करता है

बताया है किसी ने जल्द ही ये सूख जाएगी
तभी से मन मेरा घंटों नदी से बात करता है

कभी जो तीरगी मन को हमारे घेर लेती है
तो उठ के हौसला तब रोशनी से बात करता है

नसीहत देर तक देती है माँ उसको जमाने की
कोई बच्चा कभी जो अजनबी से बात करता है

मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ उसको जान लूँ लेकिन
वो मिलने पर बड़ी कारीगरी से बात करता है

खिड़कियों की साज़िशों से ••••••••••••

खिड़कियों की साजिशों से कुछ हवा की ढील से
झोपड़ी जल ही न जाए देखना कन्दील से

एक छोटा ही सही पर घाव देकर मर गई
यूँ वो चिड़िया अन्त तक लड़ती रही उस चील से

तू कचहरी की तरफ चल तो दिया पर सोच ले
फाँस गर निकली तेरी निकलेगी प्यारे कील से

तशरीफ़ लाइए ! तहे दिल से स्वागत है !😊

देखो ! कौन आया है ?

मुहब्बत करसाजी है !

Saturday, 18 February 2017

जो बात मेरे कानों में ख्वाबों ने कही है !

जो बात मेरे कान में ख़्वाबो ने कही है
वो बात हमेशा ही ग़लत हो के रही है ।

जो चाहो लिखो नाम मेरे सब है मुनासिब
उनकी ही अदालत है यहाँ, जिनकी बही है ।

टपका जो लहू पाँव से मेरे तो वो चीख़े
कल जेल से भागा था जो मुजरिम वो वही है ।

वो चाहे मेरी जीभ मेरे हाथ पर रख दे
मैं फिर भी कहूँगा कि सही बात सही है ।

इक दोस्त से मिलने के लिए कब से खड़ा हूँ
कूचा भी वही, घर भी वही, दर भी वही है ।

उम्मीद की जिस छत के तले राही रुका मैं
वो छत ही क़यामत की तरह सिर पे ढही है ।

जो बात मेरे कान में ख़्वाबों ने कही है।

Friday, 17 February 2017

कब्र से कम जमीं !

सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है , 
बा-वज़ू हो के भी छूते हुए डर लगता  है !

मैं तिरे साथ सितारों से गुज़र सकता हूँ , 
कितना आसान मोहब्बत का सफ़र लगता है !

मुझ में रहता है कोई दुश्मन-ए-जानी मेरा ,
 ख़ुद से तन्हाई में मिलते हुए डर लगता है  !

बुत भी रक्खे हैं नमाज़ें भी अदा होती हैं ,
दिल मेरा दिल नहीं अल्लाह का घर लगता है !

 ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं ,
 पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है  !

https://youtu.be/Hr30Ya9Z74U

Lucknow ki aawaz kavi moustafa ke sath !
कविताओं एवं विधाओं का उत्कृष्ट संकलन !
जहाँ आप और में मिलकर कविता को उसकी बुलंदियों तक पहुँचाने के लिए हर संभव प्रयत्न करेंगे !